Friday, 6 May 2016

सैटेलाइट सिस्टम नाविक

भारत ने पोलर सैटेलाइट लॉंच व्हीकल से अपने सातवें नैविगेशन सैटेलाइट को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया है.
इसके साथ ही भारत का नैविगेशन सैटेलाइट समूह पूरा हो गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सैटेलाइट सिस्टम को नाविक का नाम दिया है. नाविक यानि कि नैविगेशन इंडियन कॉन्स्टेलशन.
यह अमरीकी जीपीएस की ही तरह है. लेकिन जो आपके-हमारे मोबाइल फ़ोनों में अमरीकी जीपीएस दिखता है वह अमरीका के नियंत्रण में है.
मोदी पीएसएलवीImage copyrightPTI
क़ानूनन भारत युद्ध के समय इसे इस्तेमाल नहीं कर सकता. इसके अलावा इसमें एक अनंतर्निहित अशुद्धता होती है. इसीलिए भारत को अपना एक सैटेलाइट नैविगेशन सिस्टम तैयार करना पड़ा.
उपलब्धि यह है कि तीन साल के अंदर भारत ने इन सभी सात सैटेलाइट को लॉंच किया.
आने वाले समय में हर स्मार्टफ़ोन पर इसका सिग्नल मिलेगा. चूंकि यह सैटेलाइट भारत के ऊपर स्थित है इसलिए भारत में इसकी सटीकता अमरीकी सिस्टम से ज़्यादा बताई जा रही है.
इस वजह से यह चाहे स्मार्टफ़ोन में इस्तेमाल किया जाए या गाड़ी में यह ज़्यादा उपयोगी होगा - यह आपकी स्थिति और रास्ते को ज़्यादा सटीकता के साथ बताएगा.
जीपीएसImage copyrightGetty
युद्ध के समय इस सिस्टम से हथियारों को सटीकता से संचालित करना और लक्ष्य पर पहुंचाना आसान हो जाता है.
दरअसल किसी भी दूसरे देश पर आप पूरी तरह भरोसा नहीं कर सकते, वह जब चाहे इसे बंद कर सकता है या आपको इसे इस्तेमाल करने से रोक सकता है.
इसके अलावा जीपीएस जैसे सिस्टम को क़ानूनन आप युद्ध के समय इस्तेमाल नहीं कर सकते. इसलिए भारत को एक ऐसा सिस्टम चाहिए था जिस पर पूरा नियंत्रण इसका हो.


इसरो का मानना है कि भारत के यह सिस्टम 20 मीटर से भी कम की सटीकता हासिल करता है. भारत ऐसा करने वाला तीसरा देश बन गया है. इससे पहले अमरीकी जीपीएस, रूसी ग्लोनास सिस्टम काफ़ी कारगर साबित हुए हैं.